
भारतीय परंपराओं और वेद-पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाली एकादशी पर देव उठ जाते हैं। जिसके कारण इसे देवउठनी एकादशी कहते हैं पूरी जानकारी के पढ़िए वाॅयस ऑफ़ न्यूज 24 की खास रिपोर्ट।


भारतीय परंपराओं और वेद-पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाली एकादशी पर देव उठ जाते हैं। जिसके कारण इसे देवउठनी एकादशी कहते हैं, जो भारतीय संस्कृति और परम्पराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं और भगवान विष्णु तथा तुलसी की पूजा-अर्चना भी करते हैं।
देवउठनी ग्यारस के बाद से सारे शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि प्रारंभ होने का संकेत मिल जाता हैं।
ग्यारस के दिन ही तुलसी विवाह भी होता है। घरों में चावल के आटे से चौक बनाया जाता है। गन्ने के मंडप के बीच भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पटाखे चलाए जाते हैं। देवउठनी ग्यारस को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। देवउठनी या देव प्रबोधिनि ग्यारस के दिन से मंगल आयोजनों के रुके हुए रथ को पुनः गति मिल जाती है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी का यह दिन तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है और इस दिन पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि घर में आने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न हों। तुलसी का पौधा चूंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है। अतः इस दिन यह संदेश भी दिया जाता है कि औषधीय पौधे तुलसी की तरह सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो।
अयोध्या में देवउठनी एकादशी पर धूम
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी के अवसर पर अयोध्या में 14 कोसी और पंचकोशी दोनों परिक्रमाओं का विशेष महत्व होता है। पंचकोशी परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु सरयू स्नान के बाद प्रभु श्रीराम की नगरी की परिक्रमा करते हैं। इस अवसर पर देशभर से लाखों भक्त अयोध्या पहुंचते हैं और जय श्रीराम के उद्घोष के साथ भक्ति भाव से आस्था की राह पर अग्रसर होते हैं।
इस बार देवउठनी एकादशी पर लाखों श्रद्धालु प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में पंचकोशी परिक्रमा करने पहुंच गए हैं। प्रभु श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या में जहां 14 कोसी परिक्रमा में 25 लाख से अधिक श्रद्धालु आस्था की डोर से जुड़े नजर आ रहे हैं, वहीं अब एक और भव्य परिक्रमा का आरंभ हो गया है। 01 नवंबर की सुबह 4:02 बजे से पंचकोशी परिक्रमा का शुभारंभ हो गया है, जो 2 नवंबर की सुबह 2:57 बजे तक चलेगी। करीब 15 किलोमीटर लंबी यह परिक्रमा अयोध्या धाम की परिक्रमा मानी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, श्रद्धा और नियमपूर्वक पंचकोशी परिक्रमा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है।
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