
महराजगंज

महराजगंज जनपद के ठूठीबारी कोतवाली क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर गोवर्धन पूजा पर्व को स्थानीय पारंपरिक तरीके से पूरे धूमधाम के साथ मनाया गया।।पूरी जानकारी के लिए पढ़िए वाॅइस ऑफ़ न्यूज 24 की खास रिपोर्ट

महराजगंज जनपद के ठूठीबारी कोतवाली क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर गोवर्धन पूजा पर्व को स्थानीय पारंपरिक तरीके से पूरे धूमधाम के साथ मनाया गया। इस दौरान, बहनों ने पूरे विधि-विधान से गोबर का ‘गोधन’ (गोवर्धन) बनाकर उसे लाठी-डंडों से कूटने की पारंपरिक रस्म अदा की।
इस अनूठे पर्व को मनाने के पीछे कई पारंपरिक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं
भाई की लंबी उम्र और विजय की कामना: इस पर्व को मुख्य रूप से बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्ति के लिए मनाती हैं।
गोधन और गोपियों की कथा: गोधन कूटने की रस्म के पीछे एक प्रचलित कहानी है। मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण को गोपियों के साथ रास करते देखा गया, तो उनके मित्र गोधन को भी गोपियों के साथ रास करने की इच्छा हुई। गोधन ने श्रीकृष्ण का रूप धारण करके गोपियों को लुभाने का प्रयास किया, लेकिन गोपियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया और उनसे ईर्ष्या करने लगीं।
गोधन को अपना प्राण त्यागना पड़ा। हालांकि, उनकी प्रबल इच्छा थी कि गोपियां उनके आस-पास रहें। इसी कारण, इस पर्व में गोबर से गोधन की आकृति बनाई जाती है, जिसे माता और बहनें लाठी-डंडों से कूटती हैं और फिर उसे लांघती हैं। यह रस्म गोपियों की तरह गोधन के आस-पास होने का अहसास कराती है।
यमराज से माफी और प्रेम वृद्धि: यह भी माना जाता है कि इस दिन यमराज से अपने पापों की माफी मांगने पर व्यक्ति को क्षमा मिल जाती है। साथ ही, भाई-बहन द्वारा एक-दूसरे को तिलक लगाने से उनके बीच प्रेम और स्नेह में वृद्धि होती है।
भाई दूज की कथाएँ: यमराज-यमुना और श्रीकृष्ण-सुभद्रा का अटूट प्रेम
भाई दूज, जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और दीर्घायु की कामना का पर्व है। इस त्योहार से जुड़ी दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं:
भाई दूज की मुख्य कथा मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना से जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना नदी ने कई बार अपने भाई यमराज को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रित किया, लेकिन अपनी व्यस्तताओं के कारण यमराज उनके आमंत्रण को स्वीकार नहीं कर पाए।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जब यमुना ने पुनः उन्हें बड़े प्रेम से बुलाया, तो यमराज अपनी बहन के घर गए। यमुना ने उनका आगमन पर अत्यधिक प्रसन्नता के साथ गर्मजोशी से स्वागत किया, तिलक लगाया और स्वादिष्ट भोजन कराया।
बहन के इस प्रेम और आदर-सत्कार से यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने यमुना को वरदान दिया कि इस दिन जो बहन अपने भाई को आदर-सत्कार के साथ तिलक लगाकर भोजन कराएगी, उसे यमराज का भय नहीं रहेगा (अर्थात उसके भाई की अकाल मृत्यु नहीं होगी)। इसी घटना के बाद से भाई दूज का त्योहार मनाया जाने लगा।
भगवान कृष्ण और सुभद्रा की कथा
भाई दूज से जुड़ी एक अन्य प्रचलित कथा भगवान कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से संबंधित है।
कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने क्रूर नरकासुर राक्षस का वध किया और विजय प्राप्त की, तब वे अपनी बहन सुभद्रा से मिलने उनके घर पहुँचे थे।
सुभद्रा ने अपने विजयी भाई का स्वागत फूलों, मिठाइयों और दीपों से किया और शुभता एवं दीर्घायु की कामना करते हुए उनके माथे पर तिलक लगाया। माना जाता है कि इसी घटना के आधार पर भी भाई दूज (यम द्वितीया) मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
महराजगंज में धूमधाम से हुआ मां लक्ष्मी प्रतिमाओं का विसर्जन, डीजे की धुन पर झूमे श्रद्धालु, भक्तिमय रहा माहौलhttps://t.co/RZJf4nKTxU
— Voice of News 24 (@VOfnews24) October 22, 2025







