दीपावली :रेल सुविधा और ‘सरकारी दावों’ की टूटी पटरी, “सुमित कुमार सैनी” की कलम से

ब्यूरो रिपोर्ट

देश की जीवन रेखा कही जाने वाली भारतीय रेल, त्योहारों के मौसम में जिस तरह हांफने लगती है, वह हर साल एक कड़वी सच्चाई को उजागर करती है।पूरी जानकारी के लिए पढ़िए वाॅइस ऑफ़ न्यूज 24 की खास रिपोर्ट

देश की जीवन रेखा कही जाने वाली भारतीय रेल, त्योहारों के मौसम में जिस तरह हांफने लगती है, वह हर साल एक कड़वी सच्चाई को उजागर करती है.आम नागरिक के प्रति सरकारी तंत्र की उपेक्षा। चाहे वह पिछली सरकारें रही हों या मौजूदा ‘ताकतवर’ मोदी सरकार, रेल यात्रा की दुर्दशा में कोई मूलभूत सुधार होता नहीं दिखता।

यह विडंबना है कि जिस देश में 75% लोग पर्व-त्योहारों पर अपने घर जाने का प्रयास करते हैं, उस देश की सरकार उन्हें एक गरिमापूर्ण और सुनिश्चित यात्रा सुविधा प्रदान नहीं कर पाती। सरकार बड़े-बड़े वादे करती है, बुलेट ट्रेन के सपने दिखाती है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि देश की आधी आबादी के लिए सामान्य ट्रेन में ‘सीट’ तक सुनिश्चित नहीं है।

सरकार की रेल प्रबंधन क्षमता की पोल महानगरों और प्रमुख मार्गों पर खुल जाती है। उदाहरण के लिए, गोरखपुर जैसे महत्वपूर्ण शहर से दिल्ली जैसे रोजगार और शिक्षा के केंद्र तक जाने वाली ट्रेन में आज भी एक गरीब और मेहनतकश व्यक्ति को 15 दिन से लेकर एक महीने पहले तक टिकट नहीं मिलता। त्योहारों के समय तो ‘तत्काल’ टिकट भी दुर्लभ हो जाता है। ऐसे में, ये दावे कि “किसी भी नागरिक को परेशानी नहीं होगी,” केवल कोरे शब्द बनकर रह जाते हैं।

सफर नहीं, ‘ढूंसा’ जाना

आज ट्रेन के डिब्बों की हालत किसी बुरे जानवर की तरह ‘ढूंसे’ जाने से कम नहीं है। सरकार की व्यवस्था पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है: क्या यात्रियों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंस-ठूंस कर यात्रा करने के लिए मजबूर करना ही हमारी राष्ट्रीय परिवहन नीति है? महिला यात्रियों के लिए सुरक्षित और आरामदायक यात्रा की तो बात ही बेमानी लगती है।

मध्यम वर्ग, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, उसके पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए रेल के सिवा कोई सस्ता विकल्प नहीं है, फिर भी सरकार के पास इस वर्ग के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। सरकार सिर्फ भव्य ‘सपने’ दिखा सकती है, लेकिन नागरिकों को सम्मान से ‘बैठाने’ का इंतजाम नहीं कर सकती।

जब हमारी सरकारें विकास की तुलना करती हैं, तो वे अक्सर ऐसे पड़ोसी देशों से करती हैं जो पहले से ही आर्थिक रूप से संघर्षरत हैं। हमारा तुलनात्मक मानक हमारी अपनी क्षमता और देश के नागरिकों की उम्मीदों पर आधारित होना चाहिए। भारत को उन उन्नत देशों से सीखना चाहिए जिन्होंने रेल को वास्तव में एक आरामदायक, सुरक्षित और समयबद्ध परिवहन का माध्यम बनाया है।

बुलेट ट्रेन की घोषणाओं से पहले, मौजूदा ट्रेनों में यात्रियों को इंसानों की तरह यात्रा करने की सुविधा सुनिश्चित करना आवश्यक है। यह केवल सुविधाओं का नहीं, बल्कि देश के करोड़ों नागरिकों के सम्मान और उनकी जरूरतों को समझने का प्रश्न है। अगर रेल के बुनियादी ढांचे और प्रबंधन में सुधार नहीं हुआ, तो सरकार के सभी बड़े-बड़े दावों को जनता ‘खोखले’ ही मानेगी। रेल की पटरी पर यात्री सुविधा की नई इबारत लिखना आज समय की मांग है।

 

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