



विश्व रक्तदाता दिवस प्रत्येक वर्ष 14 जून को मनाया जाता है। क्या है इसका थीम, इसके द्वारा समाज पर पड़ रहे प्रभावों की पूरी जानकारी के लिए पढ़िए वाॅइस ऑफ़ न्यूज 24 की खास रिपोर्ट
14 जून को प्रतिवर्ष विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है।
यह दिन उन स्वैच्छिक और अवैतनिक रक्तदाताओं को समर्पित होता है जो अपने रक्तदान के माध्यम से अनगिनत जीवन बचाते हैं। यह न केवल आभार व्यक्त करने का अवसर है, बल्कि सुरक्षित और नियमित रक्तदान की निरंतर आवश्यकता को उजागर करने का भी समय है।
विश्व रक्तदाता दिवस का महत्व वह लोग समझते जो कभी मौत के मुंह से किसी द्वारा दान किए गए रक्त के जरिए वापस लौट आए हैं। यह दिन आम लोगों के लिए चाहे क्यों ही खास न हो लेकिन जिन्हें मौत से लड़ना है और जो रक्त के लिए लगातार चक्कर काटते हैं, उनके लिए यह दिवस किसी तोहफ़े से कम नहीं है। क्योंकि इस दिन अनेक इच्छुक रक्तदान करते हैं और दूसरे के जीवन को ज़ीने की आयु बढ़ाते हैं।
रक्तदाता दिवस की थीम :-
“रक्त दें, आशा दें : साथ मिलकर हम जीवन बचाते हैं”
रक्तदान करना न केवल एक उपकार है, बल्कि यह जिन्हें आवश्यकता होती है उनके लिए एक नई जिंदगी की आस है।
विश्व रक्तदाता के उद्देश्य:-
रक्तदान की आवश्यकता के प्रति जागरूकता :-
रक्त और प्लाज्मा की निरंतर आवश्यकता को उजागर करना और यह बताना कि यह कितने लोगों के जीवन के लिए अनिवार्य है।
नियमित रक्तदाताओं को प्रोत्साहन :-
नए रक्तदाताओं को जोड़ना और मौजूदा रक्तदाताओं को नियमित रूप से दान करने के लिए प्रेरित करना ताकि एक स्थायी और सुरक्षित रक्त आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
समाज में एकजुटता और करुणा का संदेश :-
रक्तदान के माध्यम से समाज में एकजुटता, करुणा और सहयोग की भावना को बढ़ावा देना। यह दर्शाता है कि हम सभी, एक-दूसरे के स्वास्थ्य और जीवन के लिए जिम्मेदार हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रमों को सशक्त बनाना:-सरकारों और विकास भागीदारों को इस दिशा में अधिक निवेश करने के लिए प्रेरित करना, ताकि हर किसी को सुरक्षित रक्त आधान की सुविधा उपलब्ध हो सके।
रक्तदाता का महत्व:
हर रक्तदाता अनजाने में एक नायक होता है। उसके द्वारा दिया गया रक्त – चाहे वह एक दुर्घटना पीड़ित, ऑपरेशन के मरीज, थैलेसीमिया या कैंसर से पीड़ित कोई बच्चा हो – किसी के लिए जीवन की अंतिम उम्मीद होता है।
विश्व रक्तदाता दिवस 2025: इतिहास
आधुनिक रक्त आधान की नींव 1940 में रखी गई थी, जब वैज्ञानिक रिचर्ड लोअर ने दो कुत्तों के बीच बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के सफलतापूर्वक रक्त आधान किया था।
इस सफलता ने स्वास्थ्य सेवा में सुरक्षित रक्तदान और आधान प्रथाओं का मार्ग प्रशस्त किया।