Voice Of News 24 :संविधान, अम्बेडकर और सियासत,विद्या नाथ मणि त्रिपाठी की कलम से

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24 Dec 2024 15:08PM

ब्यूरो रिपोर्ट ,Vidya Nath Mani Tripathi

भारतीय संविधान की रचना के लिए संविधान सभा की स्थापना की गई थी। इसमें कांग्रेस द्वारा चुने गए 12 प्रांतों के 229 सदस्य और 29 रियासतों से चुने गए 70 सदस्य शामिल थे,संविधान, अम्बेडकर और सियासत,विद्या नाथ मणि त्रिपाठी की कलम से

भारतीय संविधान की रचना के लिए संविधान सभा की स्थापना की गई थी। इसमें कांग्रेस द्वारा चुने गए 12 प्रांतों के 229 सदस्य और 29 रियासतों से चुने गए 70 सदस्य शामिल थे, जो उस समय की प्रमुख राजनीतिक हस्तियाँ थीं। संविधान सभा में कई उप-समितियाँ बनाई गईं, जिनमें से एक थी मसौदा समिति, जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अंबेडकर को दी गई। मसौदा समिति ने विभिन्न देशों के कानूनों का अध्ययन किया और भारतीय संदर्भ में जो उचित था, उसे संविधान का हिस्सा बनाया। इस कारण भारतीय संविधान को कभी-कभी “भानुमती का पिटारा” भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के विचारों और प्रथाओं का मिश्रण किया गया था।

 

संविधान सभा के सदस्य अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ और महारथी थे। उन्होंने संविधान की रचना में अपनी समझ के अनुसार एक आदर्श शासकीय व्यवस्था की नींव रखी, जिसमें विधि के शासन की संकल्पना को प्रमुखता दी गई। इसके लिए सदस्य अपने-अपने विचारों और दृष्टिकोणों पर गहरे विचार-विमर्श करते थे, और बहुमत के आधार पर निर्णय लिए जाते थे। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी की वहीं संसद नारे बाजी धक्का मुक्की से लेकर सिरफुटव्वल का अखाड़ा बन जायगी।और संविधान को किस तरह बंधक बनाया गया ये आपातकाल के दौरान देश ने देखा।

 

हालांकि संविधान लेखक प्रेमविहारी रायजादा थे और संविधान निर्माण समिति द्वारा पारित विधानों को मसौदा समिति द्वारा लिखित किया जाता था इस कारण संविधान निर्माता अम्बेडकर जी को माना जाता है।

अम्बेडकर जी निसंदेह विद्वान थे जिन्हें विश्व के कानुनों का ज्ञान था लेकिन वह नेहरू को फूटी आंख नहीं सुहाते थे इस कारण वह उन्हें संविधान सभा में शामिल नहीं करना चाहते थे लेकिन राजेन्द्र प्रसाद के आगे उनकी एक न चली , आजादी के बाद उन्हें हराने के लिए दो बार नेहरू कांग्रेस ने अपनी पुरी ताकत झोंक दी ।

अंबेडकर के और नेहरू के बीच के मतभेदों का असर उनके कार्यकाल पर पड़ा। उन्होंने संविधान सभा से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उन्हें लगा कि कांग्रेस और नेहरू उनकी योजनाओं और विचारों को सही तरीके से नहीं समझ रहे थे। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद भी उन्हें कांग्रेस से उचित सम्मान नहीं मिला।

उनकी मृत्यु के बाद, उनकी प्रतिमा संसद के केंद्रीय हॉल में स्थापित की गई, जो वी. पी. सिंह के प्रधानमंत्री बनने पर हुई थी। इस समय अंबेडकर को उनके वास्तविक योगदान का कुछ हद तक सम्मान मिला, लेकिन यह बाद में कांग्रेस द्वारा उन पर किए गए अत्याचारों और उनकी उपेक्षा को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सका।

 

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